EDITOR’S NOTE: The following article is from a series of Questions asked by anti-reservationists and answered by Shekhar Bodhakar
क्या भीमराव अम्बेडकर को भारत में आरक्षण के लिए दोषी ठहराया जा सकता है?
यह आपके लिए आश्चर्य की बात हो सकती है परन्तु डॉ आंबेडकर आरक्षण व्यवस्था चाहते ही नहीं थे बल्कि कस्तूरबा गांधी के निवेदन पर महात्मा गांधी की जान बचाने के लिए उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा।
डॉ आंबेडकर ने जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था को नहीं बनाया जैसा कि आम तौर पर दिखाया जाता है। वे केवल उस समय की सरकार द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्से मैकडॉनल्ड के द्वारा स्वीकृत कानूनी “कम्युनल अवॉर्ड” को लागू करवाना चाहते थे। इस समझौते ने आरक्षित जाति व जनजातियों को हिन्दू बहुसंख्यक सरकार से राजनीतिक सुरक्षा के रूप में एक अलग निर्वाचन क्षेत्र देने का अधिकार दिया जिसकी स्वतंत्रता पश्चात सत्ता में आने (लागू होने) की आशा थी। वे गांधीजी ही थे जिन्होंने इस अधि निर्णय का विरोध किया; इसके पश्चात वे आंबेडकर पर अलग निर्वाचन क्षेत्र के बदले में आरक्षण स्वीकार करने का दबाव (या यूं कहें कि एक प्रकार की भावनात्मक धमकी <इमोशनल ब्लैकमेल> ) डालने के लिए भूख हड़ताल पर चले गए। पर मजे की बात तो ये है कि इस गांधीजी ने सिखों, मुस्लिमों, आंग्ल- भारतीयों.… आदि के लिए स्वीकृत अलग निर्वाचन क्षेत्र का विरोध नहीं किया.. उन्होंने केवल अस्पृश्यों व जनजातियों को लेकर विरोध किया।
यदि किसी ने आरक्षण व्यवस्था बनाकर देश का विनाश किया है तो ये वो लोग हैं जिन्होंने “जाति वा जातिवाद” को बनाया। इसने वर्णाश्रम व्यवस्था के नाम पर समाज के हाशिए पर रखे समुदायों के लिए अकल्पनीय कठिनाइयां और निर्दयता उत्पन्न कर दी। यदि यह इसके लिए नहीं होता तो अस्पृश्यों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की आवश्यकता ही नहीं होती, ना गांधीजी का उपवास और ना ही जाति आधारित संवैधानिक आरक्षण व्यवस्था।
आरक्षण हमारे संविधान में दिया गया है, केवल अम्बेडकर के द्वारा नहीं बल्कि उस समय के सभी भारतीय अधिनायकों के द्वारा जो कि संविधान सभा के सदस्य थे।
योग्यता (मेरिट) आज भी इस देश में अनाथ है और इस पर किसी जाति विशेष का आधिपत्य नहीं है। केवल वही लोग जिनके निहित स्वार्थ हैं वे ही मेरिट के बारे में बात करते हैं। लोगों ने केवल एक जाति विशेष के लिए शिक्षा में जाति आधारित आरक्षण को असंख्य पीढ़ियों तक सहन किया और उस समय में किसी ने भी योग्यता के बारे में चिंता नहीं की। एक जाति विशेष के शत प्रतिशत लोग तो योग्य नहीं हो सकते और इसके बारे में उस समय तक किसी ने प्रश्न नहीं उठाया जब तक कि समानता, स्वतंत्रता, भाईचारे, सभी के लिए सामाजिक न्याय की भावना पर आधारित एक नए देश के निर्माण का समय नहीं आ गया जो की एक जाति आधारित समाज में कदापि संभव नहीं है।
आरक्षण नीति पूना पैक्ट का परिणाम है! जो कि केवल गांधीजी के कम्युनल अवॉर्ड के विरोध में गैर कानूनी तौर पर भूख हड़ताल पर जाने के कारण हुआ जिसे आंबेडकर ने गोलमेज सम्मेलन में कानूनी रूप से जीता था।
डॉ आंबेडकर ने ने उनके लिए कम्युनल अवॉर्ड की मांग की (और जीते भी) जो की शताब्दियों से यदि सदियों से नहीं, मानवाधिकारों से वंचित व दमन के शिकार हैं। और गांधीजी ने बदले में आरक्षण की मांग की इसलिए अम्बेडकर को आरक्षण हेतु दोषी ठहराना बंद करें जब तक कि आप पूना पेक्ट को नकारकर अलग निर्वाचन क्षेत्र के मूल समझौते को स्वीकार नहीं कर लेते।
निष्कर्ष
- यदि जाति व्यवस्था या जाति आधारित पहचान नहीं होती तो आंबेडकर की अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग कि कोई जरूरत नहीं होती।
- यदि अस्पृश्यों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग नहीं होती जैसे और समुदायों के लिए थी तो गांधीजी भावनात्मक धमकी रूपी भूख हड़ताल पर नहीं गए होते।
- यदि गांधीजी आमरण उपवास पर नहीं गए होते तो कोई पूना पैक्त ( pact )नहीं होता
- यदि पूना pact नहीं होता तो जाति आधारित आरक्षण की कोई जरूरत नहीं होती जैसा कि आज आप जानते है
- यदि जाति आधारित आरक्षण नहीं होता तो ऐसा प्रश्न भी कभी नहीं पूछा जाता।
तो कौन है भारत में जाति आधारित आरक्षण व्यवस्था का जिम्मेदार?
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Author of this article Shekhar Bodhakar is a London based Anti-Caste activist. He is the Composer of Buddhatāla and has also worked as Head of Mathematics department in a London college in the past. You can reach him at: globalambedkarites@gmail.com

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